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यूजीसी-नीट परीक्षा से जुड़ी 40 से ज्यादा याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई. गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा परीक्षा कराने की शर्त भी लगा दी. कोर्ट का कहना है कि यह ठोस आधार पर साबित किया जाना चाहिए कि चयन काफी हद तक प्रभावित हुआ है. कोर्ट ने इस मामले से जुड़ी याचिकाओं को प्राथमिकता दी है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश सी.जे.आई.टी. चंद्रचूड़ ने कहा, ‘हम दोबारा परीक्षा का आदेश सिर्फ इसलिए नहीं दे सकते क्योंकि 23 लाख में से केवल 1 लाख लोगों को ही प्रवेश मिलेगा. पूरी परीक्षा प्रभावित होने के आधार पर दोबारा परीक्षा कराई जानी चाहिए। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील नरेंद्र हुडा ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश को यह साबित करना होगा कि पेपर लीक बहुत पूर्व नियोजित था और इससे पूरी परीक्षा प्रभावित हुई।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने हुडा से देश में मेडिकल सुविधाओं के बारे में पूछा. कोर्ट को बताया गया कि यह 1 लाख 8 हजार है. उन्होंने यह भी दलील दी कि अगर परीक्षा दोबारा कराई जाती है. ऐसे में 1 लाख 8 हजार रिवीजन होंगे। उन्होंने कहा कि 22 लाख लोग पात्र नहीं होंगे. चीफ जस्टिस ने पूछा कि अगर 1 लाख 8 हजार कानूनी तौर पर नहीं मिल सके तो क्या होगा.
हुडा ने जवाब दिया कि ये 22 लाख लोग दूसरा मौका चाहते हैं. मुख्य न्यायाधीश का कहना है कि हम दोबारा परीक्षा का आदेश सिर्फ इसलिए नहीं दे सकते क्योंकि उन्हें दोबारा पेपर देना होगा। कोर्ट ने कहा कि ऐसा तभी होगा जब परीक्षा की शुचिता प्रभावित होगी.
गौरतलब है कि केंद्र और एनडीए यानी राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी ने दोबारा परीक्षा की मांग का विरोध किया है. उनका कहना है कि कुछ कथित अनियमितताओं का स्थानीय और समग्र परीक्षा पर कोई असर नहीं पड़ा. केंद्र सरकार ने भी एक हलफनामा दाखिल किया है, जिसमें आईआईटी मद्रास द्वारा डेटा विश्लेषण का जिक्र है. इससे पता चलता है कि परीक्षा में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी के कोई संकेत नहीं हैं.